Crime story: शोभराज बनने की रोमांचक कथा (2)
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Crime story: शोभराज बनने की रोमांचक कथा (2) |
दसवीं पास सुरेश यादव के शोभराज बनने की रोमांचक कथा (भाग-2) | Dr Mk Mazumdar
पहले भाग-1 का शेष.......
सन् 2009 की बात है. उन दिनों करमवीर सिंह यूपी के डीजी हुआ करते थे.
करमवीर सिंह से आशुतोष सिंह की अच्छी पहचान थी. आशुतोष, सुरेश को साथ लेकर लखनऊ पहुंचे,
ताकि करमवीर सिंह से मिल कर सुरेश यादव की निलंबन वापस हो सकें. उस दिन डीजी काफी वीजी
थे. थोड़े से समय में उन्होंने सुरेश यादव से बातचीत की. उन्हें उसी वक्त सुरेश यादव
पर शक हो गया. हालांकि उन्होंने आशुतोष को आश्वासन दिया कि इस मामले को देखता हूं.
जैसे ही आशुतोष और सुरेश दोनों वहां से निकले करमवीर सिंह ने सचिवालय फोन कर सुरेश
यादव के बारे में सारी जानकारी निकाली. जब तक आशुतोष सिंह सुरेश को लेकर गाजियाबाद
पहुंचते, रास्ते में ही डीजी साहब का फोन आया. उन्होंने कहां, जिसे लेकर तुम घुम रहे
हो वह कोई आईएएस आॅफिसर नहीं बल्कि बहुत बड़ा ठग है. आशुतोष सिंह ने सुरेश यादव को कविनगर
पुलिस के हवाल कर दिया.
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चार महिने बाद वह जेल से बाहर निकल कर सीधा रेलवे स्टेशन पहुंचा. वहां
से एक ट्रेन में बैठ गया. यह ट्रेन हाजीपुर के लिए जा रही थी. बातों में माहिर सुरेश
यादव अपने सामने सीट पर बैठे व्यक्ति से बात करने लगा. उस युवक का नाम प्रवीण सिंह
था. वह इस्टेट एजेंट था. सुरेश ने खुद को उसके सामने आईएएस के रूप में प्रजेंट किया.
सुरेश की हरकतों से प्रवीण को शक हुआ. उसने तुरंत आरपीएफ को इसकी सूचना दी. आरपीएफ
वाले उसके पकड़ कर ले गए. एक बार वह फिर से जेल में चला गया. बार-बार जेल जाने के बाद
भी उसकी आदत में सुधार नहीं आया.
इस बार जेल से निकलने के बाद वह गांव पहुंचा. गांव पहुंच कर वह दूसरी
शादी की तैयारी करने लगा. बचपन में उसकी पहले शादी हो चुकी थी. उसकी पहली पत्नी ने
उसे छोड़ दिया था. दुसरी शादी जिस लड़की से तय हुई थी उसके घरवालों को बताया था कि वह
अंडमान निकोबार में कमिशनर है, पर फिलहाल वह सस्पेंड है. कोर्ट के आदेश मिलने तक वह
स्कूल में टीचर की नौकरी कर रहा है. सुरेश यादव की बात को उसके होने वाले ससुराल वाले
सच मान बैठे और अपनी बेटी की शादी उसके साथ दे दी. वह जिस स्कूल में पढ़ाता था उसे मात्र
5 हजार रूपए मिलते थे. करीब एक साल तक उसकी पत्नी ने जैसे-तैसे गुजारा. एक दिन उसने
सुरेश से कहां, इतने कम पैसों में घर का गुजारा करना मुश्किल है. तुम किसी अच्छे वकील
से मिलो और अपने निलंबन का केस जल्दी से खत्म करवाओ.
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पत्नी ने कुछ रूपयों का इंतजाम करके उसे दे दिए. बड़े वकील से मिलने के
बहाने सुरेश सन् 2014 में गांव से निकला और सीधे मुंबई चला आया. मुंबई में अंधेरी स्थित
फ्रंट लाइन सिक्युरिटी एजेंसी में गार्ड की नौकरी करने लगा. वहां वह अपने साथी गार्डो
के बीच कह रखा था, वह निलंबित आईएएस अधिकारी है. उसका सुप्रीम कोर्ट केस चल रहा है
जल्दी ही उसका फैसला आने वाला है. उसने सिक्युरिटी आॅफिस के रिसेप्शन में कह रखा था,
उसका मोबाइल खराब है. मैंने यहां का नंबर सुप्रीम कोर्ट को दे रखा है. यदि कोई काॅल
आए तो मुझे सूचित करना. सुबह शाम आते-जाते वह रिसेप्शन में जरूर पूछ लेता, उसका कोई
काॅल आया क्या?
कुछ दिनों बाद सुरेश यादव ने किसी के मोबाइल से अंधेरी पुलिस स्टेशन पर
फोन किया. उसने कहां, वह सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार आॅफिस से बोल रहा हूं. फला नाम
का व्यक्ति फ्रंट लाइन सिक्युरिटी एजेंसी में काम करता है. उसे सूचना दे दो की आईएएस
सुरेश यादव अपना केस जीत गया है. उसने यह सब सूचना अंग्रेजी में दी थी. जिसे सुनकर
पुलिसवाले भी सही मान बैठे. तुरंत एक सिपाही द्वारा सूचना फ्रंटलाइन सिक्युरिटी कंपनी
के आॅफिस पहुंचा दिया. सुरेश यादव की इस सूचना को सुनकर सिक्युरिटी एजेंसी सारे गार्ड
खुशी से झुम उठे. सभी उसे शुभकामनाएं देने के साथ-साथ उससे नजदिकियां बढ़ाने के लिए
उसकी तारिफ करने लगे. कलेक्ट्रर बनने के बाद हमें भूल मत जाना. शातिर सुरेश उनसे उनकी
ही तरह मिल रहा था और वाद कर रहा था. उनमें से जो भी उससे मिलने उसके आॅफिस में आएगा.
वह उनसे सुरेश कलेक्ट्रर नहीं बल्कि सुरेश गार्ड होकर मिलेगा. सुरेश की यह बात सुनकर
सभी गदगद हो गए.
कंपनी में काम करने वाला ड्राइवर सूबेदार यादव सुरेश से सबसे ज्यादा प्रभावित
था. इसकी एक खास वजह थी सुबेदार भी यादव था सुरेश भी. उसे अपने यादव होने पर गर्व हो
रहा था. एक दिन सूबेदार यादव, सुरेश को साकी नाका के संघर्ष नगर में स्थित अपने घर
पर ले गया. सूबेदार ने सुरेश की काफी खातिरदारी की. इसी दौरान सुरेश ने सूबेदार से
कहा कि उसकी नाशिक कलेक्टर से अच्छी पहचान है. वहां क्लर्क की एक पोस्ट खाली है. यदि
किसी रिश्तेदार को लगवाना चाहते हो तो लगवा लो. सूबेदार ने अपने बेटे को उस पोष्ट पर
लगवा देने के लिए कहा. इसके लिए सुरेश ने साढ़े तीन लाख रूपयें मांगे. सूबेदार ने उसे
साढ़े तीन लाख रूपये दे दिए. कुछ दिनों बाद उसने सूबेदार से कहा, उसे पता चला है कि
एक स्टेनोग्राफर की भी जगह खाली हुई है. यदि कोई चाहता है तो देख लो. सूबेदार ने अपने
एक परिचित शिवधन से यह बात कहीं. शिवधन का लड़का पढ़ालिखा था. उसे भी नौकरी की तलाश थी.
सुरेश ने इस पोस्ट के लिए शिवधन से साढ़े छह लाख रूपए लिये. इसके बाद वह मुंबई से फरार
हो गया.
जनवरी 2016 में वह लौट कर मुंबई आया. सबसे पहले उसकी मुलाकात तारापुर
के विजेन्द्र दीक्षित से हुई. उसने उन्हें 6 लाख रूपये की चपत लगा दी. दहिसर की लाल
पांडे को डेढ़ लाख की चपत लगायी. इसके बाद वह साकी नाका के साध्वी बिहारी काम्पलेक्स
में सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी करने लगा. यहां पर भी उसने अपनी आईएएस की दुखभरी कहानी
सबको सुना रखी थी. इस बिल्डिंग के सभी लोग सुरेश को अच्छी नज़र से देखने लगे. उनमें
से मोहम्मद आरिफ खान, सुरेश यादव से काफी प्रभावित था. सुरेश यादव भी कम नहीं था. उसने
धन्नासेठ आरिफ खान से दोस्ती बढ़ा ली और उसका मोबाइल नंबर भी एक दिन मांग लिया. सुरेश
ने एक बार फिर अंधेरी पुलिस स्टेशन वाला फार्मूला अपनाया. उसने जस्ट डायल से साकी नाका
पुलिस स्टेशन का नंबर निकाल कर उन्हें अंग्रेजी में फर्जी नाम से फोन किया. जिसमें
उसने कहां, वह सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार आॅफिस से बोल रहा है. आरिफ खान को बात दे
कि आईएएस सुरेश यादव अपना केस जीत गए है. साकी नाका पुलिस आरिफ खान को अच्छी तरह पहचानते
थे. उन्होंने पुलिस स्टेशन से फोन आने की वजह से आरिफ भी सुरेश यादव से और अधिक प्रभावित
हो गए. उन्होंने तुरंत सुरेश यादव को साकी नाका पुलिस स्टेशन ले गए. वहां सभी अधिकारियों
से मिलवाया.
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पुलिस स्टेशन से निकलने के बाद आरिफ खान ने उसे एक मोबाइल, सिमकार्ड,
12 हजार मूल्य का एक चश्मा, 30 हजार रूपए नगद तथा एक एटीएम कार्ड व पिन नंबर दिया,
ताकि वह ज्वाइनिंग करने के लिए जा सके. उन्होंने उसे एयरपोर्ट तक छोड़ कर भी आए. उनके
जाने के बाद सुरेश ने टिकट कैंसिल करवा कर रूपये वापस ले लिए. वह मुंबई के होटल में
रूका रहा. दो दिन बाद उसने आरिफ खान को फोन करके कहां, उसकी ज्वाइनिंग नहीं हो सकी
है, क्योंकि सरकार ने कोर्ट के फैसले को फिर चैलेंज करने का फैसला किया है. वह वापस
मुंबई आ रहा है. आरिफ खान उसे लेने एयरपोर्ट पहुंच गए. लौटते वक्त उसने आरिफ खन से
बताया नौकरी ज्वाइंन करने के पहले वह अपने गांव से होकर आना चाहता है. हालांकि उसे
कुछ रूपये दें. आरिफ ने उसे रूपये दे दिए.
सुरेश यादव 6 मई 2014 को प्लाइट से वाराणसी के लिए रवाना हो गया. यहां
से वह टैक्सी से जौनपुर के लिए रवाना हुआ. जौनपुर पहुंचने के पहले उसने फर्जी नाम से
बदलापुर पुलिस स्टेशन पर फोन गिया. उन्हें बताया कि कुछ ही देर में आईएएस सुरेश यादव
वहां पहुंच रहे हैं. कुछ ही देर में एस्कार्ट टीम लालबत्ती की गाड़ी लेकर पहुंच गए.
आईएएस अधिकारी समझ कर सभी अधिकारियों ने सुरेश यादव को सैल्यूट किया. फिर सुरेश याद
को सुल्तानपुर के मर्चा गांव तक छोड़ आए. लालबत्ती से उतरते देख गांव वाले भी खुश हो
गए. सभी उसे आईएएस आॅफिसर समझने लगे.
गांव में रहते हुए सुरेश ने आरिफ खान का फोन रिसीव करना बंद कर दिया.
ऐसे में आरिफ खान को लगा, उसके साथ ठगी हो गई है. उन्होंने इसकी शिकायत साकीनाका पुलिस
को कर दी. साकीनाका पुलिस स्टेशन के तेजतर्रार सीनियर इंस्पेक्टर अविनाश धर्माधिकारी
ने तुरंत सुरेश यादव का फोन टेªपिंग पर लगा दिया. जल्द ही उसके मोबाइल का लोकेशन पुणे
दिखाने लगा. सीनियर इंस्पेक्टर अविनाश धर्माधिकारी, एपीआई. गणेश आंदे, प्रवीण शिंदे
और कांस्टेबल तुकाराम पवार की टीम ने पुणे पहुंचकर सुरेश यादव को गिरफ्तार कर लिया.
सुरेश यादव को विश्वास ही नहीं हो रहा था पुलिस उस तक पहुंच पाएंगी पुलिस द्वारा की
गई पूछताछ बाद सुरेश यादव के शोभराज बनने की पूरी कहानी सामने आयी. जिसे सुन कर पुलिस
भी हैरत में पड़ गई. कथा लिखे जाने तक सुरेश यादव जेल में था. (कथा पुलिस सूत्रों पर
आधारित)
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