खेड़ला ताल में छुपा पारस पत्थर
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Khedla Kila |
खेड़ला ताल में छुपा पारस पत्थर
भोपाल से लगभग 199 किलोमीटर दूर दक्षिणपूर्व में सतपुड़ा पर्वत के पठार में बसा है बैतूल जिला. यहां से लगभग सात किलोमीटर दूर कालापाठा मार्ग पर एक सीधी खड़ी पट्टी पर खेड़ला किला स्थित है. आज यह खंडहर मात्र है. कभी इसके अतीत में मशालों की लौ में हीरे जवाहरतों की जगमगाहट देखी होगी, वहीं तलवारों की धार पर रक्तपात का जलजला भी. अब तो यहां जिंदगी के नाम पर चमगादड़ों की फड़फड़ाहट, धुंधलाएं, सूनी आवाजे़ं ही है. इतिहास की वैभव गाथाओं के साथ यहां का इतिहास रहस्यमय पारस पत्थर से जुड़ा हुआ है, जिसकी तलाश में आदमी ही नहीं आत्माएं भी भटकती फिरती है.
पारस पत्थर
जिसे कभी किसी
ने देखा नहीं
है. सिर्फ उसके
बारे में सुना
है या पढ़ा
है. शास्त्रपुराणों, क्विंतीकथाओं,
दंत कथाओं, राजा-रानियों के किस्सों,
जादूगर व राक्षसों
की कथाओं आदि
में पारस पत्थर
के बारे में
अनेक जानकारियां मिलती
है. पारस पत्थर
के बारे में
कहा जाता है
कि यदि इस
पत्थर को लोहे
से छूआ दिया
जाए तो वह
सोना हो जाता
है, परन्तु पारस
पत्थर के आकार
प्रकार, रूपरंग, पहचान के
बारे में कोई
जानकारी नहीं मिलती.
पारस पत्थर आज
तक किसी को
मिला नहीं है
फिर भी उसके
होने से इंकार
नहीं किया जा
सकता क्योंकि इसके
संबंध में इतिहास
में अनेक जानकारियां
मिलती है.
खेड़ला किले की
दीवार पर एक
खुदाई किया हुआ
एक पत्थर शिलान्यास
के रूप में
लगा हुआ है,
जिससे पता चलता
है कि इस
किले का निर्माण
राजा ईल ने
करवाया था. ईल
वंश में सन्
1365 में राजा हरदेव
हुए थे. जिनके
शासनकाल में महात्मा
मुकुन्दराज स्वामी थे जिन्होंने
‘विवेक सिन्धु’ नामक ग्रंथ
लिखा था. राजा
हरदेव के पुत्र
जैतपाल ने उस
काल में बड़ी
प्रसिद्धी पायी थी.
स्वामी मुकुन्दराज राजा जैतपाल
के समय में
स्वर्ग सिधार गए थे.
उनकी समाधी किले
के सामने बनाई
गई थी.
Rawan Wadi Kaa Talab |
खेड़ला राज्य के
धनी होने और
राजा नरसिंह राय
के बहादुरी के
किस्सें बढ़ते जा
रहे थे. इसकी
सूचना सुल्तान फिरोजशाह
को मिली. उसने
धनसम्पत्ति लूटने के इरादे
से खेड़ला पर
चढ़ाई कर दिया.
नरसिंह राय ने
खान देश और
मालवा के राजाओं
से सहायता मांगी,
परन्तु उन्हें सहायता नहीं
मिली. सहायता ने
मिलने से राजा
नरसिंह निराशा में घिर
गए. इसके बावजूद
उन्होंने बिना युद्ध
किए अपनी हार
स्वीकार नहीं किया.
किले से 5 किलोमीटर
की दूरी पर
अपनी सेना ले
जाकर युद्ध करने
लगे. वे आगे
बढ़ते जा रहे
थे. उनकी जीत
निश्चित थी, पर
उसी वक्त किसी
कारण सैनिकों में
भगदड़ मच गयी.
किसी को कुछ
समझ में नहीं
आया. राजा भी
कुछ समझ नहीं
पाएं, वे भी
पीछे भाग खड़े
हुए. किले के
अंदर जाकर छिप
गए.
शत्रुओं ने राजा
नरसिंह राय को
दो माह तक
किले के अंदर
घेरे रखा. किले
की रशद समाप्त
हो गयी थी.
सेना आशक्त हो
गयी थी. तब
राजा नरसिंह राय
ने आत्मसर्मपण कर
उससे संधि की.
बादशाह फिरोजशाह ने राजा
नरसिंह राय की
लड़की से शादी
करने के बाद
ही किला छोड़ा.
इस बीच
नरसिंह राय की
मृत्यु के बाद
खेड़ला किला मालवा
नरेश के अधिकार
में होने का
उल्लेख मिलता है. उस
वक्त भी खेड़ला
राज्य काफी समृद्धशाली
था. इस किले
पर मोहम्मद बहमनी
ने भी चढ़ाई
की. उस वक्त
मालवा नरेश की
सेना पराजित हो
गयी. जब राजा
को बंदी बनाया
जा रहा था,
उस वक्त दो
राजपूत वीरांे ने अपनी
निडरता और वीरता
दिखा कर बादशाह
मोहम्मद बहमनी को मार
डाला. बादशाह की
मृत्यु को देखकर
उसकी सेना भाग
खड़ी हुई. जिससे
खेड़ला का राज
पुनः मालवा के
कब्जे में आ
गया. अकबर बादशाह
द्वारा खेड़ला को अपने
साम्राज्य में मिला
लेने का भी
वर्णन मिलता है.
मुगल साम्राज्य
के पतन के
बाद यह राज्य
राधोजी भोंसले के अधिकर
में चला गया.
बुरहान शाह और
उसके भाई के
आपस में झगड़े
का फायदा भोंसले
ने उठाया और
खेड़ला पर कब्जा
कर लिया. उसने
अपनी राजधानी खेड़ला
को बनाया. सन्
1818 ई. में सीताबर्ड़ी
की लड़ाई में
अंग्रेजों ने भोंसले
से खेड़ला छिन
लिया.
खेड़ला के किले
के पूर्व में
एक बड़ा तालाब
है. वहां तक
किले से एक
गुप्त मार्ग बना
है. कहा जाता
है रानियां इस
गुप्त मार्ग से
जलक्रीड़ा हेतु आया
करती थी. एक
गुप्त मार्ग के
बारे में कहा
जाता है कि
खेड़ला किले से
अचलपुर तक चैड़ी
सुरंग थी जिसमें
से हाथी आसानी
से आते जाते
थे. इस गुप्त
मार्ग द्वारा राजा
रानियां आया जाया
करती थी.
खेड़ला राज्य के
राजा जैतपाल सिंह
के पास पत्थर
जो सोना बना
देने वाला पारस
पत्थर था. राजा
जैतपाल अपने प्रजा
से कर के
तौर पर लोहा
लिया करते थे.
इसी लोहे को
सोने में बदल
कर अपने खजाने
में रख देते
थे. पत्थर से
सोना कर देने
जैसी महिमा वाली
लोकगीत आज भी
इस क्षेत्र में
ग्रामीण अंचलों में प्रचलित
हैं. इस बात
से यह अंदाजा
लगाया जा सकता
है कि राजा
के पास ऐसा
पत्थर था जिसे
लोहे के छू
देने पर वह
सोना हो जाता
था.
अंगे्रज इतिहासकार रिचर्ड
जाॅन किन्स की
एक रिपोर्ट में
गोड़वाना राज्य के इस
किले के ताल
में पारस पत्थर
होने का उल्लेख
मिलता है. एक
और अंग्रेज चाल्र्स
ग्रान्ट ने (सन्
1803 से 1818) अपने दस्तावेज
में इस किले
में पिंडारियों के
उत्पातो का वर्णन
करते हुए उनके
द्वारा यहां पारस
पत्थर की खोज
का भी उल्लेख
किया है. क्षेत्र
में पिंडारियों के
क्रूरतम गतिविधियों का भी
वर्णन किया गया
है.
अंग्रेजों द्वारा खेड़ला
किले को अपने
कब्जे में लेने
के बाद पारस
पत्थर की खोज
शुरू की. अंग्रेजों
ने हाथी के
पांव में लोहे
की जंजीर बांधकर
उसे इस तालाब
में घुमाया गया.
इसके बाद उस
लोहे की जंजीर
का एक कड़ा
खरे सोने का
हो गया था.
फिर भी पारस
पत्थर मिला नहीं.
इसके बाद गुस्से
में आकर उन्होंने
किले को ध्वस्त
करने की कोशिश
की, पर पूरी
तरह से उसे
ध्वस्त नहीं कर
पाएं.
ऐसा कहा
जाता है राजा
जैतपाल सिंह ने
अंतिम समय में
पारस पत्थर को
तालाब में फेंकवा
दिया था. आज
भी लोग पारस
पत्थर तथा खेड़ला
किले में स्थित
खजाने की खोज
में जाते हैं.
कभी परिभ्रमण के
बहाने तो कभी
चोरी छिपे. कहते
हैं पहाड़ी पर
और किले में
आज भी राजा
जैतपाल सिंह की
आत्मा घुमती रहती
है. वह उस
खजाने की रक्षा
करती है. क्योंकि
आज तक खेड़ला
के खजाने को
कोई नहीं ले
पाया है. कितने
मुगल, राजपूत, पिंडारियों
और अंग्रेजों ने
इस पर चढ़ाई
की. खजाने को
पाने के लिए
कितने खून बहाएं
इसके बाद भी
खजाना उनके हाथ
नहीं लगा. जो
लोग इस पहाड़ी
पर गए है.
वे यह कहते
हैं कि किले
के अंदर तक
पहुंचना मुश्किल है. क्योंकि
वहां पहुंचते ही
ऐसा लगने लगता
है कोई पहरा
दे रहा है.
पहाड़ी पर भटकने
वालों को आज
भी गुप्तकालीन चिन्ह
अंकित वाले सोने
के सिक्के मिल
जाते हैं.
कहते हैं
बरसों पहले एक
संत ने इन
खंडहरों में दीर्घकालीन
एकांतवास किया था.
उस दौरान उन्होंने
एक हस्तलिखित ग्रंथ
तैयार किया था.
जिसमें पारस के
भेद और उसके
बारे में जानकारियांे
पर प्रकाश डाला
था. परन्तु यह
किसी जादू की
कथा की तरह
न तो उस
संत का पता
चला, न ही
उस रहस्यमय ग्रन्थ
का. खेड़ला के
नीचे बसे गांव
हमीरपुर में कुछ
अफवाहें जरूर सुनने
को मिली. जिनके
अनुसार उस संत
के पास से
पत्थर के जानकारी
वाले ग्रन्थ को
पाने के लिए
लोभ में किले
के किसी सशक्त
अमीर व्यक्ति ने
उसकी हत्या करवा
कर वह ग्रन्थ
हासिल कर लिया.
अफवाहों और अतित
के धुंध में
लिपटे इन खण्डरों
में पारस पत्थर
एक बेपनहा भ्रम
की तरह है
जिसका उल्लेख सिर्फ
किलों में सुनने
को मिलते है.
सदियों गुजर गए.
सदियों गुजर जाएगें,
समय के साथ
खेड़ला किले का
अस्तित्व भी धूल
में मिल जाएगा.
खेड़ला में पारस
पत्थर होने की
कहानी कभी खत्म
नहीं होगी.
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पढ़े:- Business Ideas, Women Business, Hindi Crime Story, Jobs, Status Hindi, Ghar Baithe Business, Beauty Tips, Love Mantra
Paras patar bhi mojud hai waha per
ReplyDeleteEk gupt surang or ek sone ka surya mandir ager or janna ho toh mujhse sampark krna
Mera num 6263126233
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