Crime Story: असीरगढ़ के किले में खूनी खेल (1)
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Crime Story: असीरगढ़ के किले में खूनी खेल (1) |
असीरगढ़ के किले में खूनी खेल (1)
प्रदेश की पश्चिमी सीमा पर बसा एतिहासिक नगर है बुरहानपुर। वहां लगभग 22 किलोमीटर दूर असीरगढ़ का किला है। इंदौर बुरहानपुर रोड पर बसा यह किला रहस्य और रोमांच से भरा हुआ है। इस छोटे से कस्बे में स्थिति असीरगढ़ किला कई किंवदंतियों को अपने में समेटे हुए है। कहा जाता है कि गुरू द्रोणाचार्य के बेटे घटोतकच्छ की आत्मा आज भी इसी किले में रहती है। इसलिए कोई भी व्यक्ति रात के समय इस किले में नहीं ठहरता है। लोगों द्वारा कहीं बातों को सच मानें तो जिस किसी ने भी इस जनश्रुति को नकारने की कोशिश की है वह रात में इस किले के अंदर गया और अगले दिन वह आदमी सुबह किले से बाहर आता है तो पागल हो जाता है, ऐसा कहा जाता है।
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फरवरी का महिना था। वेलेंटाइन-डे नजदीक होने के कारण आसपास के षहरों से एकांत की तलाश में घूमने के बहाने किले में आने वाले प्रेमी-जोड़ों की संख्या में इजाफा होने लगा था। इसलिए निम्बोला थाना प्रभारी का ज्यादातर समय असीरगढ़ चैकी में ही बीत रहा था। इस दौरान एक दिन दोपहर के समय किले से लौटे एक बदहवास जोड़ें ने किले में हाथी खाने के पास किसी जवान महिला की लाश पड़ी होने की सूचना दी। दरअसल इंदौर से आया कॉलेज स्टूडेंट का यह जोड़ा किले में एकांत तलाशता हुआ अंदर तक चला गया जहां पड़ी एक लाश ने उनके लव-ट्रिप को डरावने सफर में बदल दिया था। दोनों प्रेमी खासे डरे हुए थे। जाहिर है कि वे इस यात्रा पर अपने घर वालों से बोलकर तो आए नहीं होंगे इसलिए उन्हें डर था कि कहीं उनका नाम किस कानूनी विवाद में न फंस जाए।
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लाश की खबर पाते ही निम्बोला थाना प्रभारी अमित सिंह जादौन तुरंत सतपुड़ा पर्वत माला की एक ऊंची चोटी पर बने इस किले में हाथी खाने के पास जा पहुंचे। मौके पर पड़ी लगभग 30 वर्शीय महिला की अर्धनग्र लाश सडना षुरू हो चुकी थी। इससे उन्होंने अनुमान लगाया कि महिला की हत्या कम से कम दो-तीन दिन पहले हुई होगी। थाना प्रभारी अमित सिंह जादौन और उनकी टीम ने किले में आसपास हत्या से जुड़े सुराग की तलाश की, लेकिन उन्हें वहां ऐसा कुछ नहीं मिला जिससे मृतका के बारे में कुछ पता चल सके। वहां पर कुछ न पाकर ऐसा लगता था हत्यारा काफी षातिर था, तभी तो अपने पीछे केवल लाश छोड़ गया था, कोई सुराग नहीं।
पुलिस के काफी प्रयासों के बाद भी मरने वाली युवती की पहचान न हो सकने के कारण उसे लावारिस मानकर दफना दिया। इस घटना के लगभग चार माह बीत चुके थे, पर अभी तक उस मष्तका की कोई पहचान नहीं हो सकी थी।
दोपहर का समय था। थाना प्रभारी अमित सिंह जादौन ऑफीस में बैठकर अपना काम निपटा रहे थे कि अचानक उनका फोन घनघना उठा। उन्होंने रिसीवर उठाकर कहा, हैलो, अमित सिंह बोल रहा हूं।
मैं बुलढाना थाना, महाराश्ट्र से बोल रहा हूं। फोन थाना प्रभारी का आया।
जी हां कहिए अचानक कैसे याद किया।
आपके थाना क्षेत्र में फरवरी माह में किसी 30 वर्षीय महिला की हत्या हुई थी।
श्री जादौन ने असीरगढ़ किले में हाथी खाना के पास मिली युवती की लाश को अभी भूले नहीं थे। उन्होंने उस लाश के बारे में बुलढाना प्रभारी को सब कुछ बता दिया।
श्री जादौन की बात सुनकर उन्होंने बताया कि मरने वाली महिला का नाम संगीता था। उसकी हत्या रामविलास नामक युवक ने की है जो पुलिस की गिरफ्त में है। रामविलास ने केवल संगीता की ही हत्या नहीं की थी बल्कि उसकी 17 वर्षीय बेटी और 11 वर्षीय बेटे की भी हत्या की थी।
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संगीता की हत्या असीरगढ़ किले में निम्बोला थाने की सीमा में हुई थी। इसलिए निम्बोला पुलिस थाना से पुलिस की एक टीम बुलढाना थाना गई और आरोपी रामविलास को वारंट पर बुरहानपुर ले आई। यहां पुलिस आरोपी को लेकर असीरगढ़ किले में उस जगह पर गई, जहां उसने संगीता की हत्या की थी। रामविलास ने संगीता और उसके दोनों बच्चों की हत्या क्यों की, इस सवाल के जवाब में तिहरे हत्याकांड की छुपी कहानी इस तरह उजागर हुई।
संगीता अपनी सुंदरता और ऊंची पूरी कद काठी के चलते उम्र से पहले ही जवान दिखने लगी थी। गांव के मनचले युवक दिनभर उसकी गली के चक्कर लगाया करते थे। यह देखकर उसके पिता ने नादान उम्र में ही संगीमा का विवाह कर दिया।
संगीता जब बीस साल की हुई तब तक वह तीन बच्चों की मां बन चुकी थी। तीन बच्चों की मां बनने के बाद भी उसका मन अभी भी जवान था जबकि उसके पति की कमर गृहस्थी के बोझ तले झुकने लगी थी। इसलिए बचपन से दर्जनों प्रेमियों को अपनी गली के चक्कर लगाने को मजबूर कर देने वाली संगीता को अपनी जवानी का यह रूखापन रास नहीं आया। इस कारण शादी के लगभग दस साल बाद वह अपने पति को छोडकर बच्चों के साथ मायके में आकर रहने लगी।
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मायके में संगीता ने गुजारे के लिए नौकरी खोज ली। नौकरी के दौरान ही उसकी मुलाकात हीरामनसे हुई। मायके में संगीता दोहरी जिंदगी जी रही थी। घर और समाज वालों के सामने वह परित्यक्ता थी, जबकि घर से बाहर नौकरी के बहाने निकलकर वह हीरामनके साथ उसकी सहचरी बनकर वैवाहिक जीवन जी रही थी।
हीरामनऔर संगीता की नजदीकी की जानकारी किसी को न थी। इस रिश्ते को हमेशा राज बनाए रखने के लिए संगीता और हीरामनने खामगांव छोडने का फैसला कर लिया। इसके लिए एक दिन पूना में काम मिलने की बात कहकर संगीता अपने बड़े बेटे को मायके में छोड़कर बेटी और सबसे छोटे बेटे को लेकर हीरामन के साथ पूना आ गई।
पूना में दोनों पति-पत्नी की तरह साथ रहने लगे। कई साल तक साथ रहे लेकिन इस बात की जानकारी संगीता के मायके वालों को फिर भी नहीं हो सकी। क्योंकि पूना आने के बाद न तो संगीता ने अपने माता-पिता से संपर्क किया और न ही उसके माता-पिता ने अपनी बेटी की खोज खबर ली। कुछ ही समय में संगीता का हीरामन से भी मन भर गया।
सच तो यह है कि संगीता को नए-नए पुरूषों से दोस्ती बनाने का आदत बचपन से ही थी। लोगों का कहना है कि चैदह-पन्द्रह साल की उम्र में ही संगीता ने कई प्रेमी पाल रखे थे। जिनसे वह रात के अंधेरे में घर के पिछवाड़े में मिला करती थी। इस बात की जानकारी हो जाने पर उसके माता-पिता इसीलिए जल्दी ही उसकी शादी कर दी थी।
संगीता अपने पति के साथ दस साल तक ही रही, पर हीरामन से उसका मन तीन-चार साल में ही भर गया और वह अपने लिए नए पुरूष की तलाश में रहने लगी। इस बीच एक दिन हीरामन, संगीता, बेटी और बेटे को लेकर षेगांव में गजानन महाराज की समाधि दर्शन के लिए गया। षेगांव में समाधि पर दर्शन करते हुए संगीता की नजर अपने पास खड़े एक युवक रामविलास धुले पर पड़ी जो ललचाई नजरों से लगातार संगीता को देख रहा था।
रामविलास धुले को देखकर संगीता को लगा कि उसे जिस युवक की तलाश थी वह यही है। उसने उसे भगवान का प्रसाद मानकर स्वीकार करने की ठान ली। हीरामनआंख बंद किए ध्यान में खोया हुआ था। यह देखकर संगीता ने उस युवक को इशारे से अपने पास बुलाया। संगीता ने उससे सीधे पूछ लिया, क्या तुम मुझे पसंद करते हो?
हां।
जिंदगी भर मेरा साथ निभाओगे?
हां सात जन्मों तक साथ दूंगा। मंदिर के अंदर खड़ा हूं झूठ नहीं बोलूगा।
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तो चलो कहते हुए हीरामन को मंदिर में बैठा छोडकर संगीता अपने नए प्रेमी का हाथ थामकर मंदिर से उसके साथ गायब हो गई। इधर ध्यान-पूजा के बाद हीरामन, संगीता को न पाकर परेशान हो गया। वह उसे खोजते-खोजते थक हार कर वापस घर लौट आया।
दूसरी तरफ चूंकि हीरामन बिना शादी के ही संगीता के साथ रह रहा था इसलिए उसने संगीता की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज नहीं करवाई। मंदिर से भागकर संगीता, रामविलास के साथ दूसरे गांव में जाकर रहने लगी। इधर उसके मायके वालों को अब तक संगीता के बारे में कुछ भी नहीं पता था, न उन्हें हीरामनअथवा रामविलास के बारे में कुछ जानकारी थी।
सोलह साल की हो चुकी संगीता की बेटी बेटी अब भी हीरामनके साथ ही रह रही थी। संगीता को डर था कि कहीं उसकी गैर मौजूदगी में हीरामनबेटी को अपने साथ न सुलाने लगे। इसलिए बेटी को अपने पास लाने के लिए संगीता ने एक चाल चली। उसने एक दिन हीरामनको फोन किया और अकोला आने के लिए कहा। हीरामनने उसके गायब हो जाने के बारे में पूछा तो संगीता ने कहा कि यह लंबी कहानी है। तुम अकोला आकर मुझे साथ ले चलो में सब बता दूंगी।
संगीता के मिल जाने की खुशी में पागल हीरामन उसे लेने अकोला पहुंच गया। संगीता के इंतजार में सुबह से शाम हो गई लेकिन उसे अकोला में संगीता नहीं मिली। जिसके बाद वह रात में वापस पूना लौट गया। पूना पहुंचकर उसे संगीता के धोखे के बारे में पता चला। वास्तव में हीरामन को अकोला बुलाना संगीता की साजिश थी। इसलिए इधर हीरामन अकोला गया और उधर पीछे से पूना आकर संगीता घर का सारा कीमती सामान अपने साथ लेकर भाग गई। संगीता की इस हरकत से हीरामन का दिल टूट गया। वह समझ गया कि संगीता अब कभी भी उसके पास लौटकर नहीं आएगी। वह सब कुछ भूलकर जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश करने लगा।……. शेष भाग (2) में.......
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