मानव तस्करों के चंगुल में फंसी..... (भाग-1)
मानव
तस्करों के चंगुल में फंसी प्रिया की
दर्दनाक दास्तान (भाग-1)
पश्चिम बंगाल के एक छोटे से कस्बे से प्रिया को अच्छी नौकरी दिलाने के बहाने आगरा ले आया और यहां जिस्मफरोशी कराने वाले रैकेट के हाथों बेच दिया। इसके बाद प्रिया के साथ क्या हुआ आगे उसकी दर्द भरी कहानी पढ़ें................
उस कमरे में घोर अंधेरा और खामोशी के अलावा कुछ नहीं था. रह-रह कर प्रिया के रोने की सिसकिया कमरे की गहरी खामोशी को तोड़ रही थी. जरा सी आहट के साथ प्रिया चैंक जाती. कहीं काली, भद्दी सी औरत आकर फिर से उसकी पिटाई न करने लगे. पिछले सात दिनों से वह औरत और एक खतरनाक दिखने वाला मर्द दोनों मिलकर प्रिया की पिटाई कर रहे थे. डंडे, छड़ी से प्रिया की इतनी पिटाई की थी की पूरा शरीर उसका फूल गया था. शरीर का ऐसा कोई हिस्सा नहीं था, जहां पर न मारा हो. इसके अलावा ब्लेड से भी उसके शरीर पर इतने घाव किए गए थे कि वहां से खून भी रिस रहा था.
अंधेरे कमरे में सुबह से कब शाम हो जाती और कब शाम से सुबह हो जाती, प्रिया को इसका पता नहीं चलता था. तभी दरवाजे पर कुंडी खुलने की आवाज हुई तो प्रिया सहम कर दीवार के सहारे छिपने की कोशिश करने लगी.
दरवाजा खुला, टार्च की हल्की रोशनी प्रिया के करीब आकर रूक गई. एक मर्दाना आवाज उभरा, ‘‘खाना खा ले वर्ना मर जाएगी. मार खाने से बचना है तो धंधे के लिये तैयार हो जा.’’ कहकर उसने थाली प्रिया के सामने रख दिया.
प्रिया ने खाने की थाली को दूर ढ़केलते हुए कहा, ‘‘मर जाऊंगी..... पर मैं खाना नहीं खाऊंगी.’’
“लगता है तू ऐसे नहीं मानेगी...... तेरे पर हमारे यहां के सांडों को चढ़ाना पड़ेगा.’’ कहकर वह तेज कदमों से दरवाजा खुला छोड़कर चला गया. उसके बाहर निकलते ही प्रिया अपनी जगह से उठी और दरवाजे के बाहर भागने के लिए निकली, लेकिन दरवाजे पर काली मोटी भैंसे जैसी औरत से टकरा गई.
“भागना चाहती है. मेरी जान, लेकिन तू यह जान ले जो एक बार यहां आ गया वह यहां से निकल कर भाग नहीं सकती. यह एक ऐसा पिंजड़ा है जहां एक बार पंछी अंदर आ गया तो उसकी आत्मा भी यहां से नहीं निकल सकती समझीं.‘‘
“नहीं आंटी आप मुझे छोड़ दो. मैं घर जाना चाहती हूं. मेरे मम्मी-पापा का रो-रो कर बूरा हाल हो रहा होगा. आपको जितना पैसा चाहिए मैं अपने पापा से दिलवा दूंगी. आपको विश्वास न हो तो आप मुझे खुद ले चलो.’’ प्रिया ने आंटी के पैर पकड़ कर विनती की, लेकिर उस पर कोई असर नहीं हुआ.
आंटी ने पैरों से प्रिया को झटकते हुए कहा, ‘‘ज्यादा सायनापन दिखाने की जरूरत नहीं है. जल्दी से खाना खा लें वर्ना भूखी मर जाएगी.’’
“मैं तब तक नहीं खाऊंगी, जब तक मुझे मेरे गांव वापस नहीं भेंज देते.’’
“गांव जाएगी, मम्मी-पापा के पास जाएगी. फिर तेरे पर लाख रूपये खर्च किए वह कहां से आएगा. तू धंधा नहीं करेंगी तो मेरे और मेरे परिवार का पेट कैसे चलेगा. हम तो भूखे मर जाएगे. अब भी तू ही बता क्या हम तेरी वजह से मर जाएं. यह कैसे हो सकता है. अब मेरी बात सुन, बात मान जा वर्ना मुझे गुस्सा आ गया तो मैं तेरे.... उसके अंदर डंडा चलवा दूंगी. तब तू मेरी बात मानेंगी?’’ महिला ने गुस्से से दांत भिजते हुए कहा.
प्रिया कुछ नहीं बोली, वह चुपचाप रोती रही.
“मेरी बात मान ले वर्ना मैं तुझे मार डालूंगी.’’
“मार डालो, मुझे मार डालो. रोज-रोज मरने से अच्छा है एक बार में मर जाऊं.’’ प्रिया ने चीख कर कहा.
“मारूंगी.... हरामजादी मारूंगी, पहले मुझे मेरे पैसे तो वसूल कर लेने दें.’’ इतना कह कर वह औरत वहां से चली गई. उसने उमा नाम की एक लड़की को प्रिया के पास भेंजा.
“मत रोओ, प्रिया आज तुम जैसी रो रही हो एक दिन मैं भी इसी तरह से रो रही थी. ये बड़े जालिम है. इनका दिल किसी भी तरह से नहीं पसीजता.’’
“उमा मैं जान दे दुंगी लेकिन इनकी बात नहीं मानुंगी.’’
“यहां जान देना भी आसान नहीं है. नहीं तो में कब की जान दे चुकी होती. इन दरिन्दों के चंगुल में जो एक बार आ गया उसकी मौत भी इसके परमिशन के बिना नहीं निकलती. मेरी बात मान, कुछ खा लें. खाना को ठोकर मारना अन्नदेवी का अपमान है.’’
न चाहते हुए भी प्रिया ने उमा के कहने पर खाना खा लिया. उमा ने उसका बदन छूकर देखा वह तप रहा था. ‘‘तेरे को तेज बुखार है, मैं आंटी से कहती हूं तेरे को आराम करने दें.’’
इतने में दरवाजा खुला. काली औरत की आवाज़ गूंजी. ‘‘उसने खाना खाया क्या?’’
“हां, आंटी उसे खाना खिला दिया है. उसका बदन तप रहा है, तेज बुखार है, आंटी आज उसे कुछ न कहें, आराम करने दें.’’
“चल हट, आज से वह धंधे पर बैठेगी. बहुत हो गया नाटक. एक सप्ताह से परेशान कर दिया है. आज एक मालदार सेठ आ रहा है. उसकी नथ उतराई में अच्छे पैसे देने को तैयार है.’’
“हरगीज नहीं, मैं ऐसा गंदा काम हरगीज नहीं करूंगी. औरत होकर तुम औरत से गंदा काम करवाती हो, तुम्हें शर्म नहीं आती.’’
“देख मैं तेरे पे रहम करती जा रही हूं और तू मेरे पर ही चढ़ती जा रही है. अब भी मान जा, कहे दे रही हूं.’’ कहते हुए काली औरत ने उस पर हाथ उठाया तो उमा ने औरत का हाथ पकड़ लिया.
“आंटी, बेचारी पर अब इतना जुल्म मत करो. मैं उसे समझा दूंगी. मेरी तरह वह भी मान जाएंगी.’’
“ठीक है, उसे अच्छे से समझा दें. आज रात को कोई नाटक न करें. बोनी खराब नहीं होनी चाहिए. बात मान जाएं तो भले से रहेगी.’’
“मैं उसे अच्छे से समझा दूंगी, आप यहां से जाओं.’’ उमा ने प्रिया को बहुत समझाया पर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हुई. पलंग पर पड़ी रोती-रोती सो गई. रात करीब दस बजे कमरे का दरवाजा खुला. काली औरत के साथ एक 50-55 साल का मोटा तगड़ा सेठ कमरे में आया. काली औरत ने प्रिया से कहा, ‘‘आज सेठजी को खुश कर दें जिंदगी भर राज करेगी. नाटक मत करना वर्ना खैर नहीं.’’ इतना कह कर वहां से चली गई.
अधेड़ उम्र का सेठ धीरे-धीरे कदमांे से प्रिया के पास आया और आहिस्ते से पलंग पर बैठ गया.
“जब तक शबाब के साथ शराब न हो तो मजा ही नहीं आता है. उसने अपने पैंट की जेब से दारू की बोतल निकाली और गटागट पीकर बोतल को एक तरफ फेंक दिया.
“माल चोखा है आज तो मजा आ जाएगा.’’ कहते हुए उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए. इतने में दरवाजें पर आवाज आई.
“क्या है?’’
दरवाजा ढ़़केल कर एक व्यक्ति अंदर आया. ‘‘सेठजी माफ करना थोड़ी तकलीफ दी.’’
“आगे बोलो.’’
“बात दरअसल यह है कि यह बताने आया था, माल शील बंद है. आपके द्वारा इसका उद्घाटन हो रहा है, तो सेठजी आप समझ रहे हैं न.’’
“भड़वे इतनी सी बात के लिए कबाब में हड्डी बन गए. कलि को मसलने की कीमत बाद मंे मांग लेते.’’
“सेठजी, आप पर तो भरोसा है, लेकिन बात धंधे की है. आप समझते हंै, घोड़ा घास से दोस्ती तो नहीं कर सकता, फिर वह खाएगा क्या?’’
“डायलाॅग बाजी बंदकर और यहां से जा, जानता है दवा का असर खत्म हो गया तो मामला बिगड़ जाएगा.’’
“सेठजी मैं यह बताने आया था कि अड़ियल घोड़ी है, जरा संभल कर चढ़िएगा. बाकि आप तो काफी अनुभवी है.’’
“मैं सब समझ लूंगा, मैं क्या कोई नया खिलाड़ी हूं. जवानी से अब तक दसियों के शील तोड़े हैं. अब भाग यहां से..... मेरा टाइम मत खराब कर.’’
आने वाला व्यक्ति जल्दी से वहां से चला गया.
सेठजी ने प्रिया के गाल पर हाथ रख कर सहलाया. ‘‘वाह! क्या माल है......बहुत ही साफ्ट है......पूरी मक्खन है......मजा आ जाएगा.’’
इतने में प्रिया की नींद खुल गयी. वह हड़बड़ा कर उठ बैठी.
“जानू हम है आज रात के तुम्हारे आशिक हें....हें....’’ सेठ ने प्रिया से चिपटते हुए कहा.
प्रिया रोने लगी. वह अपने हाथ जोड़ कर सेठ के सामने गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘सेठ जी, मुझ पर रहम करो. मैं आपकी बेटी की उम्र की हूं. आप मुझे मेेरे माता-पिता के पास भेंजवाने में मदद करें.’’
“तू चिंता मत कर.... मैं तेरी मदद करूंगा. बस तू मुझे एक बार खुश कर दें. उसके बाद तू जहां से आयी है वहां भेंजवा दूंगा.’’ कहते हुए वह प्रिया का जिस्म चुमने लगा. उस पर वहशी दरिन्दें की तरह टूट पड़ा. प्रिया खुद को बचाने के लिए संघर्ष करती रही. प्रिया की मिन्नतों का असर सेठ पर नहीं हो रहा था. आखिर में वह कमरे से निकल कर दरवाजे से बाहर आ गयी. वह कई कमरों के अंदर से भागते हुई यहां वहां करते-करते सड़क पर आ गई. वह बदहवास सी भागती रही……. शेष भाग-2 में
Comments
Post a Comment