khandwa : पति की लाश पर प्यार की मौज


15 जून की सुबह का वक्त था. लखन खंडवा के इंदौर रोड स्थित बलखड़पुरा में स्थित अपने खेत पर पहुंचा. वहां रखें लकड़ियों के दो गठ्ठर किसी ने रात में जला दिए थे. लखन पिता छगन दोंदवाड़ा का रहने वाला था. मन ही मन उसने कहा, गांव में रहने वाले जो हरामी उससे जलते हैं उन्हीं में से किसी ने इन लकड़ियों के गठ्ठर को जलाया होगा. 

वह लकड़ियों के राख को देख रहा था. अचानक उसकी निगाह जले लकड़ियों के राख पर गई. उसे राख में कुछ अधजली हड्डियां दिखायी दी. उसे देखने पर मानव की हड्डियां लग रही थी. हड्डियां देख लखन घबरा गया. कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए. पुलिस उससे आकर पूछताछ करेंगी इसके पहले उन्हें सूचित करना होगा. देर न करते हुए लखन सीधा छैगांव माखन पुलिस स्टेशन पर पहुंच गया. वहां उसने सूचना दी कि उसके खेत में रखंे लकड़ियों के ढेर को किसी ने रात में जला दिया. अभी जब मैं वहां पहुंचा, राख में मुझे अधजली हड्डियां दिखाई दी. उसे शक है वह मानव की हड्डियां होगी.

पुलिस ने सूचना को गंभीरता से लेते हुए. छैगांव माखन थाना प्रभारी एसआई पीके सांवले, अर्चना सिंह चैहान के साथ लखन के साथ मौके पर पहुंचे. मौके पर पहुंच कर पुलिस ने जांच शुरू कर दी. राख में पड़ी अधजली हड्डियां को देख पुलिस को भी मानव शरीर की हड्डिया लगी. पुलिस उन्हें बटोर कर जांच के लिए फोरेंसिक लैब इंदौर भेंज दिया. तथा उस स्थान पर घेरा बना कर एक होमगार्ड को निगारी के लिए तैनात कर दिया.
पुलिस ने फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया. अगले दिन फोरेंसिक टीम ने मौके पर पहुंच कर बारिकी से निरीक्षण किया. जब तक रिपोर्ट आती पुलिस ने मामला दर्ज कर आसपास के क्षेत्र में गुमशुदा लोगों के बारे में सूचना इकट्ठा करना शुरू कर दिया. तीन दिन में जांच रिपोर्ट भी आ गई. जिसमें बताया गया वह अधजली हड्डिया किसी 30-40 साल के पुरूष की है. 
महेन्द्रसिंह सिकरवार(एसपी खण्डवा)

इसी बीच दैनिक अखबार में छपी एक खबर को लेकर कुछ लोग छैगांव माखन थाने पर पहुंचे. उन्होंने बताया कि हमारा बेटा नाहर सिंह पिता सरदार सिंह उम्र 34 साल 14 मई 2016 से लापता है. उसका मोबाइल भी बंद है. वह अग्रवाल ओवरसीज के पीछे क्वाॅर्टर में अपने बच्चों व पत्नी के साथ रहता था. इस बारे में उनकी बहू दंर्गा भी कुछ सही नहीं बता रही है. नहार के भाई ने अपनी भाभी और उसके मुंहबोले भाई सुनील पर शक जाहिर किया. इस पर पुलिस ने नाहर की पत्नी दुर्गा और संदीप को हिरासत में लेकर पूछताछ की. पहले दोनों पुलिस को गुमराह करते रहे. पर पुलिस के सवालों के आगे ज्यादा देर टिक नहीं सके. आखिर में दोनों ने अपना अपराध कबूल कर लिया. पति को रास्ते से हटाने के लिए पत्नी दुर्गा ने प्रेमी सुनील के साथ मिलकर पति की निर्मम हत्या की थी. पति की हत्या के बाद पत्नी ने प्रेमी का शव पंलग के नीचे छिपा दिया था और प्रेमी के साथ रातभर उसी कमरे में रही. पति-पत्नी और वो की कहानी कुछ प्रकार थी.
रसोई का काम खत्म करने के बाद दुर्गा बाई अपने कमरे में सोने चली गई. उसने अपना बिस्तर ठीक किया और उस पर लेट गई. धीरे-धीरे रात गहराती जा रही थी, पर नींद उसके आंखों से कोसों दूर थी. यह उसके लिए रोज का नियम बन गया था. उसके पति नाहर सिंह का जीवन नौकरी में सिमट कर रह गया था. वह रात भर डियुटी करता और दिन भर पड़ा-पड़ा सोता रहता था. उसने कभी यह महसूस नहीं किया कि उसकी पत्नी की भी कुछ जरूरतें हैं. जिसे पूरा करना भी एक पति के लिए जरूरी होता है.

दुर्गा बाई दिखने में खूबसूरत औरत थी. नाहर जब उसे शादी करके लाया था. उस वक्त उसे काफी प्यार करता था. दिन रात उसकी सेवा में लगा रहता था, पर जब तीन-चार साल में दुर्गा बाई कोई बच्चा नहीं दे पायी तो दयाराम का मन उससे हट गया. इस बीच उसकी डियुटी रात पाली की हो गई. वह पिछले कुछ समय से रात पाली में जा रहा था. सुबह डियुटी से लौटने के बाद वह इतना थक जाता था कि दिन भर पड़ा-पड़ा सोता रहता था.

करीब छः माह पहले ग्राम टेमनी में रहने वाले संदीप काम की तलाश में खंडवा आया. उसे काम तो नहीं मिला पर उसके कई अच्छे दोस्तों से जरूर मुलाकात हो गई. उनमंे से किसी दोस्त ने नाहर के कमरे के पास एक खाली कमरा संदीप को दिला दिया. पहली ही मुलाकात में नाहर और संदीप अच्छे दोस्त बन गए. संदीप काम की तलाश में पूरा खंडवा छान मारा पर उसे नौकरी नहीं मिली. वह काफी परेशान हो गया. नौकरी न मिलने के दर्द को नाहर अच्छी तरह से समझता था. उसने भी एक साल के लगभग बेरोजगार रह कर गुजारे थे. जब कहीं से भी संदीप को जौब नहीं मिली तो  वह काफी परेशान हो गया. नाहा समयसमय पर उसकी मदद कर देता था.
नाहर की डियुटी रात में थी. डियुटी जाने के बाद दुर्गा बाई घर पर अकेले रह जाती थी. एक रात दुर्गा बाई  को नींद नहीं आ रही थी. वह अपने कमरे से निकली और बाहर बरामदे में टहलने लगी. उसका तन अजीब नशे से भर हुआ था. जिससे अपना अकेलापन उसे नाग बनकर डस रहा था. कुछ देर तक बाहर टहलने के बाद दुर्गा बाई  कमरे के अंदर आकर खाट पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगी, पर उसे नींद नहीं आ रही थी. उसे रह-रह कर अपने पति की याद आ रही थी. उसे लग रहा था, उसका पति उसके पास आये और उसे इस तरह से जकड़े की उसकी हड्डियां भी चटक जाएं. उसे रह-रह कर अपने पति को अपने सीने से लगाने की इच्छा हो रही थी. जब उसके अंदर की बेचैनी बहुत बढ़ गई तो वह खाट से उठ कर बैठ गई. अपने अंदर की बेचैनी को कम करने के लिए उसने एक लोटा ठंडा पानी लिया और एक ही सांस में उसे पी गई, पर इसका कोई असर नहीं हुआ. उसके अंदर की गर्मी एक बूंद भी शांत नहीं हुई. वह एक बार फिर उठी और बाहर जाकर टहलने लगी.
मृतक नहार
इतने में उसने देखा पोड़ोस में रहने वाले संदीप के कमरे में लाइट जल रहा है. वह धीरे-धीरे कदमों से संदीप के कमरे में गई. उसने कमरे में झांक कर देखा संदीप अभी भी जाग रहा था. उसे जगा हुआ देखकर वह कमरे के अंदर चली गई.  संदीप जवान था और अविवाहित भी, सो उसे कमरे में अकेला पाकर दुर्गा बाई के दिल में पाप का दिया जल उठा. अपने सांसों को काबू में करते हुए संदीप के पास पहुंच गई और बोली, ‘‘क्या बात है, तुम्हें नींद नहीं आ रही है?’’
‘‘अरे, भाभी आप यहां, कोई प्राब्लम हो गई क्या? संदीप खाट से उठते हुए कहा.
‘‘नहीं कोई प्राब्लम नहीं है .....पर तुम बताओ ऐसी क्या बात हो गई जो तुम्हें नींद नहीं आ रही.’’ दुर्गा ने अंगड़ाई लेते हुए कहा.

आरोपी दुर्गा और संदीप
‘भाभी बस नौकरी की चिंता है.... कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल रही है.’’
‘‘सिर्फ नौकरी की चिंता करोंगे कि कोई छोकरी के बारे में भी सोचोंगे.’’
‘‘नौकरी मिल जाने के बाद छोकरी तो अपने आप मिल जाएगी.’’
‘‘छोकरी मिल जाने के बाद फिर तुम भी अपने मामा की तरह उसे अकेला तड़पता हुआ छोड़कर नौकरी करने चले जाओगे.’’ कहते हुए दुर्गा संदीप के एकदम करीब जाकर बैठ गई और उसके खुले जांघ पर हाथ फेरने लगी. उसके अंग में तेजी से लावा भरने लगा. संदीप कोई दूध पीता बच्चा तो नहीं था जो दुर्गा भाभी के इशारों को न समझ रहा हो. वह बेकाबू हो गया. उसने दुर्गा को कस कर अपनी बांहों में जकड़ लिया. संदीप कुंवारा जरूर था किन्तु औरतों के मामले में वह अनाड़ी नहीं था. इस बात का एहसास दुर्गा को तब हुआ जब संदीप ने देखते ही देखते उसके जिस्म से सारे कपड़े हटा दिए और उसके स्तनों को अपने हाथों से मसलने लगा. दुर्गा के सारे शरीर में तेजी से करंट दौड़ गया. इतने में संदीप ने दुर्गा के सारे शरीर पर चुबंनों की बौछार लगा दी. दुर्गा का सारा शरीर भाव विहवल हो उठा. दुर्गा के मन में पहले से ही वासना के घुमड़ रहे थे. यशवंत का साथ मिलते ही उसकी इच्छा ने भयानक रूप ले लिया. दोनों में सांसों का तूफान चल रहा था. कामना की तपती भूमि पर संदीप के पौरूष की बौछार करें इसके लिए दुर्गा ने उसके अंग को अपने अंदर कस कर भींच लिया और उसके ताल में ताल मिलाने लगी. काफी देर तक यह सब चलता रहा. जब दोनों अलग हुए पसीने से तरबतर थे. दोनों के चहरे पर संतुष्टि के भाव थे.
पहली बार इस सिरहन भरे रास्ते पर चलने पर संदीप को डर लग रहा था, पर जोश और आवेग के आगे वह खुद को रोक नहीं सका था. प्रथम मिलन के बाद सारा भय खत्म हो गया था. इसके बाद तो दोनों के बीच रोज रात को संबंध बनाने का सिलसिला बन गया था. हर रात दुर्गा अपने प्यार की सुराही से संदीप को उन्माद कर रस पिलाने लगी.
उस रात के बाद दुर्गा अपने पति दयाराम को भूलती चली गई. इसी तरह काम की तलाश में आये संदीप का भ्ज्ञी था. कहते हैं अवैध संबंध की गंध को अधिक समय तक छुपाए नहीं रखा जा सकता. यह धीरे-धीरे दुगंध में बदल जाती है और आस-पास में फैलने लगती है. नाहर को जल्द ही संदी और उसकी पत्नी दुर्गा के बीच पक रही सैक्स खिंचड़ी के बारे में पता चल गया. वह समझ रहा था. दुर्गा से इस बारे में पूछने पर इंकार ही करेगी. उसने दोनों को रंगे हाथों पकड़ने का प्लान बनाया. इसके लिए वह एक  रात अपनी डियुटी छोड़कर अचानक घर आ गया. घर पर दुर्गा और संदीप की रासलीला देखकर उसका पारा सातवंे आसमान पर पहुंच गया. उसने अपनी पत्नी को बूरी तरह से मारने लगा. मौका पाकर संदीप वहां से भाग गया. भाग कर जाता भी कहा, उसका कमरा तो नाहर के घर के बगल में था. नाहर के डर से वह दिनभर घर नहीं गया. रात का अंधेरा फैलने पर जैसे ही घर में घुसा नाहर एक मोटा सा डंडा लेकर पहुंच गया. नाहर इतने गुस्से में था कि वह संदीप को उस डंडे से पीट कर मार डालना चाहता था.   
नाहर के गुस्से को देख वह समझ गया. आज तो उसका बच पाना मुश्किल है. नाहर डंडे से उस पर वार करता किसी तरह से वहां भाग निकला. कई दिनों तक वह यहां भटकता रहा. दुर्गा इस बीच संदीप का खबर लेती रही. वह किसी  दुर्गा और संदीप में प्यार इतना परवान चढ़ गया था कि दोनों एक-दूसरे से जूदा होने के लिए तैयार न थे. नाहर के डियुटी पर चले जाने के बाद भी दुर्गा और संदीप एक दूसरे से मिलने के तड़प उठे. उन दोनों ने जल्दी ही घर से बाहर मिलने का अपना नया ठिकाना खोज लिया. दोनों किसी लाज या धर्मशाला में रूक कर अपनी शारीरिक प्यास बुझाते थे.
एक दिन दुर्गा ने यशवंत से कहा, ‘‘तुम अगर मुझे दिल से चाहते हो तो खूसट नाहर को रास्ते से हटा दो.’’
‘‘ऐसा करना बड़ा मुश्किल है।’’ संदीप ने डरते हुए कहा.
‘‘देखो, अगर तुम मेरे जिस्म का आनंद लेते रहना चाहते हो तो यह तुम्हें करना ही पड़ेगा वर्ना मुझे भूल जाओ.’’ दुर्गा ने धमकाते हुए कहा।
संदीप दुर्गा के जिस्म का दीवाना बन चुका था. उसके बिना उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह दुर्गा को क्या जवाब दें. दुर्गा ने संदीप से कहा, ‘‘मैंने टीवी सीरियल क्राइम पेट्रोल देखकर नाहर को निपटाने का प्लान बना लिया है.’’
पूरा प्लान सुनकर संदीप दुर्गा का साथ देने के लिए तैयार हो गया. दुर्गा अनपढ थी पर उसने क्राइम पेट्रोल देखकर पति की हत्या का प्लान इस ढंग से बनाया था कि हत्या का शक फैक्ट्री के सुपरवाइजर शिवपाल पर हो. दरअसल, शिवपाल दुर्गा के पति नहार का दोस्त था वह अक्सर नहार के घर आया करता था. अक्सर दोनों एक साथ बैठ कर शराब पीते थे. शिवपाल अपने दोस्त नहार के पास जरूर आता था. पर उसकी निगाह नहार की खूबसूरत पत्नी दुर्गा पर थी. वह किसी तरह से उसे अपने चुगुल में फंसाने की कोशिश में था. हर तरह का चारा दिखाने के बाद दुर्गा उसके जाल में नहीं फंस रही थी.
11 जून को देर रात तक दोनों शराब पीते रहे. इस बीच दुर्गा ने शिवपाल का मोबाइल चुराकर उसमें नहार की सिम डाल दी थी. दुर्गा का अनुमान था. पुलिस जब नहार की खोज करेगी. सबसे पहले वह नहार का मोबाइल ढुंढ़ेगी. शिवपाल के मोबाइल में जब नहार का नंबर बजेगा. पुलिस का शक उस पर जाएगा. उसे पकड़ कर ले जाएगी.
रात में शिवपाल वहां से चला गया इतने में संदीप वहां पहुंचा. नहार शराब के नशे में बेहोश हो चुका था. घर में रखे सिलबट्टे से उन्होंने नहार के सिर पर तेज वार किया. एक ही वार में सिर तरबूजे की तरह फट गया. दोनों ने घर के अंदर ही खाट के नीचे नहार की लाश को रख दिया. इसके बाद दोनो उसी खाट पर रासलीला रचाने लगे. कब सुबह हो गई. उन्हें पता ही नहीं चला. लाश को ठिकाने लगाने के लिए रात का इंतजार करने लगी. उस रात भी दोनों ने पहले रासलीला करने की सोची. इस रात भी दोनों रात भर रासलीला में लगे रहे. सुबह हो गई. लाश को ठिकाने लगाने का अवसर नहीं मिला.
संदीप दिन में जंगल की ओर गया था. उसने लौट कर दुर्गा को बताया. एक जगह पर उसने लकड़ियों का गठ्ठर देखा है. हम लाश को उस जगह पर ले जाकर लकड़ियों के गठ्ठर के नीचे रख कर आग लगा देंगे. उस  रात दोनों किसी तरह से लाश को उस स्थान पर लेकर पहुंचे. लाश को लकड़ियों के नीचे रख कर आग लगा दी. लकड़ियां सूखी थी. वह धूधू कर जलने लगी. जब उन्हें लगा लाश राख बन चुकी है. दोनों घर लौट आए. घर आकर दोनों ने नहार की मौत का जश्न सेक्स करके मनाया. अगले दिन से दोनों अपने अपने कमरे में इस तरह से रहने लगे जैसे कुछ हुआ ही न हो.
कहा जाता है लाश बोलने लगती है. ऐसा ही कुछ यहां भी हुआ. लाश राख में बदलने के बाद भी उसके कुछ अवशेष हड्डियों के रूप में रह गए थे. उन हड्डियां ने लखन से चुगली कर दी. लखन ने पुलिस स्टेशन पर खबर कर दी. इसके बाद नहार के हत्यारे जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थे. जहां उनकी जमानत करवाने के लिए कोई नहीं गया था. (कथा पुलिस सूत्रो व जनचर्चा पर अधारित है.)

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